मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती (जन्मदिन) #eduvictors #hindi-writers
मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती
31 जुलाई, आधुनिक भारत के शीर्षस्थ साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती (जन्मदिन) है|
आइये जानते हैं हिंदी साहित्य के इस महान रचनाकार के बारे में कुछ अहम जानकारी |
31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था, लेकिन साहित्य में उनकी ख्याति ने उन्हें प्रेमचंद बना दिया|
वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू लेखन भी करते थे. उर्दू लेखन में उन्होंने अपना नाम नवाब राय रखा था.
महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की साहित्य की अनेक विधाओं में अभिव्यक्ति हुई है. उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने साहित्य सृजन का किया|
अपने जीवनकाल में ही उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि मिल गई थी, किन्तु पाठकों के बीच आज भी उनका कहानीकार का रूप स्वीकारा, सराहा जाता है|
मुंशी प्रेमचंद एक ऐसी शख्सियत थे - जिसके लिए कर्मभूमि कागज थी, तो रंगभूमि कैनवास|
उनका जीवन जितनी गहनता लिए हुए है, साहित्य के फलक पर उतना ही व्यापक भी है. उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें तथा हजारों की संख्या में लेख आदि की रचना की.
31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में जन्में मुंशी प्रेमचंद ने एक गरीब परिवार से आने के बाद भी देश की आजादी के लिए गांधी जी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी थी.
स्वाधीनता संग्राम में उन्होंने राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत सोज़े वतन नाम का कहानी संग्रह लिखा.
मुंशी प्रेमचंद अपनी हर कृति को इतने समर्पित भाव से रचते कि पात्र जीवंत होकर पाठक के ह्रदय में धड़कने लगते थे. यहां तक कि पात्र यदि व्यथित हैं तो पाठक की पलक की कोर भी नम हो उठता|
पात्र यदि किसी समस्या का शिकार है तब उसकी मनोवैज्ञानिक प्रस्तुति इतनी प्रभावी होती है कि पाठक भी समाधान मिलने तक बेताबी का अनुभव करता है|
वे स्वयं आजीवन जमीन से जुड़े रहे और अपने पात्रों का चयन भी हमेशा परिवेश के अनुसार ही किया. उनके द्वारा रचित पात्र होरी किसानों का प्रतिनिधि चरित्र बन गया|
मुंशी प्रेमचंद एक सच्चे भारतीय थे. एक सामान्य भारतीय की तरह उनकी आवश्यकताएं भी सीमित थी|
उनके कथाकार पुत्र अमृतराय ने एक जगह लिखा है - "क्या तो उनका हुलिया था, घुटनों से जरा नीचे तक पहुँचने वाली मिल की धोती, उसके ऊपर कुर्ता और पैरों में बन्ददार जूते"|
आप शायद उन्हें मुंशी प्रेमचंद मानने से इंकार कर दें लेकिन तब भी वही मुंशी प्रेमचंद था क्योंकि वही हिन्दुस्तान हैं|
मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के पहले साहित्यकार थे जिन्होंने पश्चिमी पूंजीवादी एवं औद्योगिक सभ्यता के संकट को पहचाना और देश की मूल कृषि संस्कृति तथा भारतीय जीवन दृष्टि की रक्षा की|
सुमित्रानन्दन पंत के शब्दों में - मुंशी प्रेमचंद ने नवीन भारतीयता एवं नवीन राष्ट्रीयता का समुज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत कर गांधी जी के समान ही देश का पथ प्रदर्शन किया|
मुंशी प्रेमचंद भारतीयता के सच्चे प्रतीक और सशक्त प्रतिनिधि थे - किन्तु यह हमारी वैचारिक दरिद्रता है कि हम उस युगपुरुष को याद भी करते हैं तो तब जब किसी स्तरहीन विवाद के चलते गोदान की प्रतियां जलाई जाती हैं|
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